Thursday, October 6, 2011

'Neem School' Shaayad sach mein khushi ka ek nirmal srot !

6th अक्टूबर २०११

आज चौथा दिन था उस निर्मल स्रोत का जिसने सच में ही कहीं मुझमें निर्मल सा एक ख़ुशी का पुट छोड़ दिया है
मैं उस मजदूरों के बच्चों के लिए शुरू किये गए स्कूल की बात कर रही हूँ    
जो की हमारी ही सबसे बड़ी सरकारी कालोनी न्यू मोती बाघ में मैंने शुरू किया 
जहाँ यह छोटे छोटे बच्चे बस यूं ही मिटटी में खेल कर अपना समय व्यतीत करते...

कम से कम नहीं तो डेढ़ दो सौ झुग्गियन होंगी यहाँ चूँकि construction का बहुत तेज़ी से काम चल रहा है!
बहुत सारी इमारतें बन रही हैं...उनमें से एक में मैं भी रहती हूँ...!
यह मिटटी में हाथ पैर सान कर मुस्कुराने वालों और उसी हाथ से रोटी चटनी खाने वालों ने ही बनाये हैं यह बहुत ही सुन्दर फ्लाट्स...

 बड़ी शान है एस सुंदर सी कालोनी की!
 
झुग्गियों के चक्कर लगाये तो माँ बहुत ही खुश हो गयी...
अरे बीबीजी मैं तो बहुत दिन से ढूंढ रही थी की कोई पढ़ा दे मेरे लड़के को...
कल ही उसे मैंने गाँव भेज दिया...वहां पर शायद पढ़ जाए !
उफ़ क्या मैंने देर तो नहीं कर दी ?

वोह ३ अक्टूबर २०११ का पहला दिन जब मैंने बस यूं ही एक white board और दो बड़ी चादर लेकर शुरू कर दिया वोह अपना 'नीम स्कूल'
 मैं तो बस एक कुर्सी daal कर  और बोर्ड लगा कर  इंतज़ार करने लगी...तो देखते क्या हूँ मेरे 'नीम स्कूल' का पहला विद्यार्थी चला आ रहा है :)
मेरा ख़ुशी का ठिकाना नहीं ...अरे यह तो सच-मुच ही अन्दर की ख़ुशी है ...यह तो अभी  भी मैं महसूस कर सकती हूँ जब मैं यह पोस्ट लिख रही हूँ !!!

क्या सुच में एक ख़ुशी का निर्मल स्रोत मिल गया...
फिर आये पूरे २१ छोटे बड़े बाल गोपाल...यानि मेरे 'नीम स्कूल' के विद्यार्थी!
और दुसरे दिन ३४ और तीसरे दिन पूरे ४५ !!

लो अगल बगल के अफसरान की मेमसाहबों ने एक बहुत ही सरल रास्ता ढूंढ लिया स्वर्ग का...
इन छोटे छोटे बच्चों के लिए यह ले आयीं बहुत सारे attractions !
यानि केले, सेब, कैडबरी, पूरी हलवा ! हाँ हाँ अष्टमी है ना!
भाई हम तो सिर्फ नौ कन्याओं और एक 'लंगूर' को ही देंगे ..........

ओह्ह मेरे यह मासूम पूरे टूट पड़े की शायद फिर कब मिले..
मैंने उनको रोका..और पढने के बाद सबको मिलेगा यह कह कर शांत किया
अरे वोह सचमुच में पढने लगे...
शायद पेट कुछ कह रहा था...
लेकिन उसकी आवाज़ ना सुन का मैडम की आवाज़ को सुनना उन्होंने ज्यादा अच्छा समझा !
यह तो कोई स्कूल में नहीं गए थे...फिर कैसे यह  

मैं तोह बस देखती ही रह गयी...शायद हमने भी ऐसी सहेंशीलता का ब्योरा भूख में नहीं दिया होगा..

बाकी कल लिखूंगी...चूँकि अजित मेरे पति मेरे लिए एक  गरम प्याली चाय बना लाये हैं...
हाँ मैं काफी खुश नसीब भी हूँ...लेकिन फिर भी वोह निर्मल स्रोत ख़ुशी के क्यों धुनती रहती हूँ ?
अंजलि निगम
 

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